देवा (Deva)
- रेटिंग : 4 star
- कलाकार :शाहिद कपूर , पूजा हेगड़े , प्रवेश राणा, पावेल गुलाटी
- निर्देशक :रोशन एंड्रयूज
- निर्माता : रौशन एंड्रयूज
- लेखक :
- रिलीज डेट :Jan 31, 2025
- प्लेटफॉर्म :थिएटर
- भाषा :हिंदी
- बजट :N/A
- अवधि:2 Hrs 36 Min
देवा फ्लिम के कुछ पहलु को जाने
साल 2019 में आई शाहिद कपूर अभिनीत फिल्म कबीर सिंह तेलुगु फिल्म अर्जुन रेड्डी की रीमेक थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। इसके तीन साल बाद उनकी फिल्म जर्सी भी तेलुगु फिल्म की रीमेक थी लेकिन फिल्म असफल रही। उनकी फिल्म के देवा के प्रचार में निर्माता निर्देशक इस बात से बचते आए कि यह साल 2013 में आई रोशन एंड्रयूज निर्देशित और पृथ्वीराज सुकुमारन, जयसूर्या और रहमान अभिनीत मलयालम फिल्म ‘मुंबई पुलिस’ की रीमेक है, जिसका निर्देशन रोशन एंड्रयूज ने किया है।
‘देवा’ की कहानी
एक सिरफिरे पुलिसवाले देवा (शाहिद कपूर) की कहानी फ्लैश बैक से शुरू होती है, जहां वह एक बहुत बड़े केस को हल करके लौट रहा होता है। तभी उसका एक्सीडेंट हो जाता है और उसकी याददश्त चली जाती है। देवा की याददाश्त जाने वाली बात की जानकारी सिर्फ उसके डॉक्टर और सीनियर फरहान (प्रवेश राणा) को है। दुर्घटना से पहले देवा ने फरहान को बताया था कि उसने केस सॉल्व कर दिया है। दबंग पुलिसवाला देवा मुजरिमों को बिना कोई प्रोटोकॉल फॉलो किए इतनी बेरहमी से मारता है कि उसके बारे में पत्रकार दीया (पूजा हेगड़े) भी लिख देती है कि वो पुलिस वाला है या माफिया? देवा को मुंबई के एक गैंगस्टर (मनीष वाधवा) की तलाश है, मगर जितनी बार देवा उसे पकड़ने की कोशिश करता है, उतनी बार वह गैंगस्टर पुलिस की पकड़ से भाग निकलने में कामयाब हो जाता है। पुलिस विभाग को शक है कि कोई अंदर का भेदिया है, जो बदमाशों से मिला है।
- एक्टिंग : शाहिद कपूर ने कमाल का काम किया है, उनमें इतना गजब का कनविक्शन दिखता है कि आप हैरान हो जाते हैं. कबीर सिंह को शाहिद भुला देंगे, उनके एक्सप्रेशन, एक्शन, बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी, सब इतना कमाल है कि आप नजरें हटा ही नहीं पाते. शाहिद ने फिर बता दिया कि एक्टिंग के मामले में वो अलग ही मुकाम पर पहुंच चुके हैं. वो खराब फिल्में नहीं करते और खराब एक्टिंग तो बिल्कुल नहीं. ये फिल्म उनके कद को और बड़ा करती है. पूजा हेगड़े ठीक हैं, ज्यादा इंप्रेस नहीं करती. उन्होंने सारी एक्टिंग शाहिद को ही करने दी. पावेल गुलाटी का काम अच्छा है. प्रवेश राणा का काम शानदार है. कुब्रा सेत कुछ खास इंप्रेस नहीं कर पाती. गिरीश कुलकर्णी जमे हैं.
- डायरेक्शन : रोशन एंड्रयूज मलयालम सिनेमा के बड़े डायरेक्टर हैं और मलयालम सिनेमा इन दिनों कमाल कर रहा है. वही कनविक्शन इस फिल्म में दिखती है, हीरो बिल्कुल हीरो लगा है, जो करता है आपको मजा आता है. फिल्म को कमाल तरीके से बुना गया है, सस्पेंस के साथ एक्शन का डोज बिल्कुल सही अमाउंट में डाला गया है. फिल्म की कहानी बॉबी – संजय ने लिखी है और फिल्म का स्क्रीप्ले बॉबी – संजय, अब्बास दलाल, हुसैन दलाल, अरशद सैयद, सुमित अरोड़ा ने मिलकर लिखा है. यानि 6 लोग लगे इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है, और इन सबने अच्छा काम किया है. कहानी ही किसी फिल्म का हीरो होती है और यहां से हीरो अपना काम अच्छे से करता है.
मूल फिल्म की तरह ही, फिल्म की शुरुआत इस संवाद से होती है जिसमें हीरो फरहान को फोन करता है और कहता है कि मामला बंद हो गया है, उसके बाद दुर्घटना होती है। जबकि मलयालम संस्करण में सीजीआई का उपयोग किए बिना एक वास्तविक स्टंट का विकल्प चुना गया था, बड़े बजट के हिंदी संस्करण में एक भयानक सीजीआई दुर्घटना दृश्य है जो आपको शुरू से ही निराश करता है। 5 मिनट बाद, हमारे पास भसड़ मचा गाना है, जिसमें देव (एंटनी मूसा) अपनी बहन की शादी में नाच रहा है। अपने बेहतरीन कामों में से एक को बॉलीवुड में ले जाकर और इसकी पटकथा में दखल देकर, रोशन एंड्रयूज ने मूल रूप से महत्वाकांक्षी फिल्म निर्माताओं को यह सबक दिया कि कैसे पटकथा एक कहानी को सही ढंग से पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मूल फिल्म के पहले भाग में होने वाली बहुत सी चीजें देवा के दूसरे भाग में भी हो रही हैं, और इसे मूल फिल्म से अलग बनाने के लिए ये सभी रचनात्मक विकल्प वास्तव में अंतिम मोड़ के खुलासे की सुंदरता को खराब कर रहे हैं। शाहिद कपूर जैसे स्टार के नेतृत्व में इस फिल्म के लिए देवा एक मर्दाना नायक बनने की कोशिश कर रहा है। चूंकि मुंबई पुलिस के इस संस्करण में मूल फिल्म के समलैंगिकता वाले पहलू का उपयोग करने की हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्हें एक नया ट्रैक बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है जो बेहद सामान्य है। यह आश्चर्यजनक ट्रैक उन्हें नायक की मर्दानगी को बढ़ाने का अवसर देता है और यहां तक कि फिल्म में एक नायिका भी है, जो शुक्र है, शोपीस नहीं थी। देवा एक ऐसी फिल्म है जिसने मुझे विश्वास दिलाया कि बजट की कमी वास्तव में निर्माताओं की रचनात्मकता को आगे बढ़ा सकती है। मुंबई पुलिस का वह दृश्य याद है जहां एंटनी मूसा महिला को दिखाता है कि हरे रंग की कार का मूल रंग।
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कैसा है फिल्म का क्लाइमैक्स? दीया का पात्र मूल फिल्म में नहीं था। अगर इसमें भी नहीं होता तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता। पत्रकार होने के बावजूद उनका पात्र कहानी में कोई खास योगदान नहीं दे पाता हैं। उसके पिता विस्फोट में घायल होने के बाद चल फिर नहीं सकते लेकिन मजाल है कि दीया को कोई अफसोस हो। देव का अपनी शादीशुदा पड़ोसन के साथ संबंध और उसका राज बताने का प्रसंग बहुत सतही है। फिल्म का क्लाइमैक्स सपाट तरीके से सामने आता है। वहां पर देव की मन:स्थिति या दुष्परिणामों को लेकर कोई आत्ममंथन न दिखना अखरता है। भावनात्मक दृश्यों में कोई भी भाव न जागना भी फिल्म की सबसे बड़ी कमी है।
शाहिद कपूर पहले भी हैदर, उड़ता पंजाब, कबीर सिंह जैसी फिल्मों में आक्रामक, थोड़ा सनकी, मनमौजी, बेबाक मिजाज में नजर आ चुके हैं। देव की भूमिका में उन्हें देखकर आप चौंकते नहीं है। यद्यपि आक्रामक से शांत देव बनने की प्रक्रिया में वह सहज नजर आते हैं। पूजा हेगड़े के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है।