gumla trible women’s sanitary pad business ;सरकार द्वारा सहायता
gumla trible women’s sanitary pad business ;गुमला में आदिवासी महिला द्वारा women’s sanitary pad business को सरकारी समर्थन देकर उध्मीयता को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया।

gumla trible women’s sanitary pad ;झारखण्ड राज्य के गुमला जिला में आदिवासी महिला द्वारा women’s sanitary pad business अस्थापित किया गया है। उस उदमीयता को सरकारी समर्थन देकर सरकार उदमीयता को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। गुमला जिला के जिला समाज कल्याण विभाग द्वारा सभी सरकारी स्कूल में मुफ्त sanitary pad वितरण के लिए थोक में खरीदना सुरु कर दिया है। खबर निकल कर सामने आ रही है की जिला समाज कल्याण विभाग द्वारा हर साल 1 लाख नेपकिन खरीदेगा। यह कार्यक्रम बेटी पड़ाव बेटी बचाव और स्वास्थ स्वछता के अंतर्गत पूरा किया जा रहा है। सरकार इस कार्य क्रम से उदमीयता को बड़वा देना चाहती है। इस उध्मीयता सेल्फ हेल्प ग्रुप (SHG ) के तहत गुमला जिला के डुमरी ब्लॉक की 12 महिला द्वारा इस उध्मीयता को खड़ा किया गया है। इस ग्रुप में सभी के सभी महिला आदिवासी लोग ही हैं जो की सुपरनोवा SANITRY PAD का उत्पादन कर रहे है और वो डिस्ट्रिक्ट के किसोरी प्रोजेक्ट के अंतर्गत आता है ।’ द किसोरी ‘ प्रोजेक्ट की सुरुवात महिला ग्रुप द्वारा पिछले साल अक्टूबर महीने से सुरु किया गया था। गुमला जिला के DC ने उदमीयता को सपोर्ट में कहा की ये बेसिक जरूरतों में से एक है। अच्छा क़्वालिटी के सेनेटरी पैड काफी महंगी हो जाती है इससे गरीब निचले वर्ग के लिए बहुत ही ज्यादा दिकत का सामना करना पड़ता है। हम इस मिशन के द्वारा 6 और 7 रुपया में उपलब्त कराने की कोसिस करेंगे ‘ उज्ज्ना बिजना ‘अभियान के अंतरगत।DC का कहना है हम पिछड़े वर्गो की छमता को खोलना चाहते है ताकि अपनी जीवन सैली को सुधार कर सके और अपनी जीवन में इस्तिरता ला सके। अभी इस उध्मीयता से लगभग 10 से 14 हज़ार पेड बनाने की छमता है। अभी तक 1 महीने में 1 लाख तक की मांग आयी थी।
सैनिटेरी पैड क्या है
सैनिटरी पैड शोषक उत्पाद है जो की विश्व की हर महिला इस्तेमाल करती है। महिला लोग सैनिटरी पैड तब इस्तेमाल करती है जब महिला को प्राकृतिक मासिक धर्म से गुजरना पड़ता है। मासिक धर्म जैविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से विश्व की सभी महिला को गुजरना पड़ता है। समय के साथ सरीर में बदलाव होना प्राकृतिक का नियम हैं।
सैनेटरी पैड उपलब्ता न होने के नुक्सान
1 .स्वास्थ में प्रभाव
.हर साल दुनिया भर में महिला के प्रजनन अंगो में शंक्रमण का शिकार लाखो महीला होती हैं।
.कुछ डाटा के अनुसार भारत में 70 %महिलांओं के प्रजनन अंग में संक्रमण के मुख्य कारन साफ सफाई को माना गया है। साफ सफाई ठीक से न होने का कारन महिलाओं को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
2 .शिक्षा में रुकावट
.मासिक धर्म सुरु होने पर लड़कियों को स्कूल जाने में बहुत कठिनायों का सामना करना पड़ता है। कुछ आंकड़े के अनुसार 23 %लड़िकया उस समय स्कूल नहीं जाती हैं।
.सभी सरकारी स्कूल में अच्छी टॉयलेट सुविधा न होने के कारण लड़कियों को असहज महसूस करती। इस लिए मासिक धर्म के समय स्कूल जाना पसंद नहीं करती है।
.मासिक धर्म के कारण स्कूल में लड़कियों की उपस्तिति काम होने से उनकी शिक्षा में प्रभावित होती है
3 .मानसिक असर
.मासिक धर्म के कारण लड़कियों में समाज में असहज महसूस करती हैं। शर्म और छुपी के कारण अपनी तकलीफों को नहीं नहीं बता पाती हैं।
स्रोत | मुख्य तथ्य / आंकड़ा |
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UNICEF और WaterAid | भारत में 35% लड़कियाँ मासिक धर्म के समय कोई सैनिटरी प्रोडक्ट उपयोग नहीं कर पातीं। |
NFHS-5 (2020-21) | 15-24 आयु वर्ग की 64% महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत और भी कम है। |
Menstrual Hygiene Alliance of India (MHAI) | भारत में लगभग 30 करोड़ महिलाएं सैनिटरी पैड्स की नियमित पहुंच से वंचित हैं। |
समाधान क्या है ?
समाज में जागरूकता लाये की मासिक कोई शर्म की बात नहीं है। मासिक के धर्म है जो की दुनिया की हर महिला को गुजरना पड़ता है और ये प्राकृतिक है। इसके लिए सरकार को आगे आने की जरुरत है। सरकार को जागरूकता फैलाने की कोसिस करने की जरुरत है। सरकार को ऐसा योजना लाने की जरुरत है जिस से इस समस्या से महिलाओं की मुश्किल कम हो सके। सरकार कुछ अभियान चला रही है| कुछ इस तरह है
उड़ान योजना | किशोरियों को सैनिटरी पैड्स और शिक्षा प्रदान करना | मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देना |
सुगम्य भारत अभियान | दिव्यांगों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना | दिव्यांग महिलाओं के लिए हाइजीन सुविधाएं सुनिश्चित करना |
पोषण अभियान | कुपोषण को कम करना | मासिक धर्म में पोषण की ज़रूरतों को पूरा करना |